ये कहानी है विश्वास से अंधविश्वास तक के सफर की,ये कहानी है स्त्री के उस जंग की जिसकी लड़ाई आज भी हम औरतें न जाने कितने रूपों में लड़ रही हैं ये कहानी है प्रेम झूठ धोखा विश्वासघात की... कहानी शुरू होती है अक्षर और संप्रदा की प्रेम कहानी से जो बाद में ऐसा मोड़ लेती है जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की होती है स्वयं संप्रदा भी नहीं... अक्षर का सच जान कर संप्रदा हैरान रह जाती है तो आखिर ऐसा कौन सा सच है जिसे जान कर संप्रदा के होश उड़ गए जानने के लिए पढ़िए “चाँद की राख“
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